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Showing posts from November, 2021

कवि आलोक धन्वा को पढ़ना!

कवि आलोक धन्वा को पढ़ना प्रेम और क्रांति के मिश्रित संगीत को सुनने जैसा आभास देता है जिसमें एक ओर असीमित प्रेम की ललक है, प्रेम करने की इच्छा है और प्रेमी से एक और बार मिलने की कसक है , वहीं शोषण से परेशान होते, विस्थापित की तरह अपने गांव की याद है, हत्या और आत्महत्या के बीच साथी को फर्क समझ लेने की सीख है।  राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित कवि आलोक धन्वा का कविता संग्रह "दुनिया रोज़ बनती है " पढ़ना विभिन्न अनुभूतियों, विचारों और दुखों से मिलने के समान है। जिसे पढ़कर उम्मीद कभी मरती है तो घर के छत से चांद को देखकर जंगल की रात को याद करना याद आता है।  आलोक धन्वा को पढ़ने का सुख इस मायने में और भी बढ़ जाता है जब ये आभास होता है जिस कल्पना की उड़ान हम कभी नही कर पाते है कवि वो उड़ान भरने के बाद उसके अनुभव हमसे हमारे घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग की तरह प्रेम से मुस्कुराते हुए हमसे साझा करते जाते है अपने कविता के सौंदर्य में और उससे भी ज्यादा उसके अंधेरे में।  बिहार, वामपंथी विचारधारा, गरीब, मज़दूर, विस्थापित उनकी कविता के कुछ विषय है जिनके विषय में कवि कविता से ज्यादा वो...